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संसद के 60 वर्ष

जो कहूँगा सच कहूँगा .
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भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ और 26 जनवरी 1950 को इसका संविधान लागू हुआ या यू कहे कि उक्त तिथि को भारत एक गणतांत्रिक राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर उभरा .भारत अपने लम्बे इतिहास में पहली बार एक आधुनिक ढांचे के साथ पूर्ण संसदीय लोकतंत्र बना .लोकतंत्र (Democracy जिसकी उत्पत्ति यूनानी शब्द demos अर्थ जनता और kratos शासन या सरकार से हुई हैं .)एवम प्रतिनिधि संस्थाए भारत के लिए नई नहीं हैं. सबसे प्राचीनतम वेद ऋग्वेद में सभा और समिति नामक दो संस्थाओ का उल्लेख मिलता हैं. वही से आधुनिक संसद की शुरुआत मानी जा सकती हैं. प्राचीन भारतीय समाज का मूल सिद्धांत यह था कि शासन का कार्य किसी एक व्यक्ति के इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि पार्षदों कि सहायता से किया जाना चाहिए. पार्षदों के परामर्श को आदर पूर्वक स्वीकार किया जाता था . निचले स्तर पर लोकतंत्र प्रादेशिक परिषदों (जनपद ) ,नगर परिषदों (पौर सभा ) और ग्राम सभा के रूप में विधमान थे .संविधान के अंतर्गत विधिवत प्रथम निर्वाचन 1951 – 52 में हुए . इस द्विसदनीय संसद के दो सदन थे—- (1 ). लोकसभा (House of the people , Lower house )
(2 ). राज्य सभा (Upper house )

प्रथम लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ और उसकी पहली बैठक 13 मई 1952 हुआ .इस लोकसभा के गठन के समय सदस्यों कि आयु 45 वर्ष 8 माह थी .प्रथम लोकसभा चुनाव में कौंग्रेस (स्थापित 1885 ) को 70 प्रतिशत से अधिक स्थानों पर जीत मिली. प्रथम लोकसभा में चुने गए सदस्यों कि शैक्षिक स्थिति पर गौर करे तो 37 प्रतिशत स्नातक ,23 .2 प्रतिशत दसवी तक या उससे कम . महिला सदस्यों कि संख्या 4 .4 प्रतिशत थी .प्रथम लोकसभा में विपक्ष के लिए आवश्यक बहुमत किसी दल के पास नहीं था फिर भी विभिन्न दलों को मिलाकर एक सशक्त विपक्ष भूमिका में था जिसमे आचार्य कृपलानी ,एन. सी .चटर्जी ,डॉ.श्यामा प्रसाद ,रेनू चक्रवर्ती , डॉ. लंका सुन्दरम आदि स्वाधीनता सेनानी ,शक्तिशाली वक्ता ,और संसद के नियम -कानून के कुशल जानकर लोग मौजूद थे. इन्ही विपक्षी नेताओ के कारण 1956 में टी .टी .कृष्णामचारी को मंत्री पड़ छोड़ना पड़ा था .

“हमने संसदीय लोकतंत्रात्मक प्रणाली को सोच -समझकर ही चुना हैं ,हमने इसे केवल इसी कारण नहीं चुना कि हमारा सोचने का तरीका कुछ हद तक ऐसा ही रहा बल्कि इस कारण भी कि पुरातन परम्पराओं का पुरातन स्वरुप में नहीं अपितु नई परिस्थितियों और नए वातावरण के अनुसार बदलकर अनुसरण किया गया हैं ,इस पद्धति को चुनने का एक कारण यह भी हैं कि हमने देखा कि अन्य देशों विशेष रूप से यूनाईटेड किंगडम में यह प्रणाली सफल रही हैं .”

पंडित जवाहर लाल नेहरु (भारत के प्रथम प्रधानमंत्री )

दूसरी लोकसभा में भी कौंग्रेस को अच्छी सफलता मिली .उसे प्रथम लोकसभा से 7 स्थान अधिक (371 ) मिले.इसी लोकसभा में अनेकों सामाजिक सुधार अधिनियम पारित हुए. संविधान में कुल 4 संशोधन हुए और इनमे से एक द्वारा गोवा को भारत संघ में शामिल किया गया . दूसरी लोकसभा में केरल कि निर्वाचित कम्युनिष्ट सरकार को बर्खास्त किया जाना और राष्ट्रपति शासन राज्य पर थोपा जाना कार्यकाल कि एक प्रमुख घटना थी .लोकसभा के महासचिव रहे 1984 -90 एवम संविधानविद श्री सुभाष कश्यप कि पुस्तक “हमारी संसद ” के अनुसार “जब अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरू के एक पूर्व सचिव एम .ओ .मथाई के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन की एक शिकायत कि तो स्वयं जवाहर लाल नेहरू ने सिफारिश की कि मामले को रहा दफा न किया जाए और उसे विशेषाधिकार समिति को सौप दिया जाए “. उन्होंने कहा -“जब सदन का एक अंग चाहता हैं कि कुछ किया जाना चाहिए तो फिर यह मामला ऐसा नहीं रह जाता जिसे बहुमत से तय किया जाए और उन भावनाओ कि अवहेलना कि जाए.”

पंडित जवाहर लाल नेहरु अपनी आलोचनाओ को बड़े ध्यान से सुना करते थे और साथ -साथ मुस्कुराते भी थे. डॉ. लोहिया एक बार पंडित जी (जवाहर लाल नेहरु ) की ओर इशारा करते हुए बोले ,इन हजरत को देखिए ,इनके कुत्ते का रोज का खर्च 25 रुपए और देश के आम आदमी की रोजाना आय 25 पैसे .डॉ. लोहिया ने प्रधानमंत्री (नेहरू ) की निजी सुरक्षा और सुविधाओं पर होने वाले व्यय(खर्च ) की भारी आलोचना की .

15 वी लोकसभा
———————

गठन :- 2009
कुल सदस्य :- 543 निर्वाचित व दो नामजद
महिला सदस्यों की संख्या :- 60
औसत आयु :- 54 वर्ष
सबसे वृद्ध पुरुष सदस्य :- राम सुन्दर दास (जन्म तिथि – 9 जनवरी 19 21 )
सबसे वृद्ध महिला सदस्य :- श्री मति विजोया चक्रवर्ती (जन्म तिथि – 7 अक्टूबर 1939 )
सबसे कम उम्र के सदस्य :- हमीदुल्लाह सईद (जन्म तिथि – 11 अप्रैल 1982 )
सबसे युवा महिला सदस्य :- सारिका बघेल ( 9 अगस्त 1980 )
शैक्षिक पृष्ठभूमि
______________
मैट्रिक (उससे काम) :- 52
प्रोफेशनल ग्रेजुएट :- 113
स्नातकोत्तर(P .G ):- . 109
स्नातक:- 147
इंटरमिडीएट :- 47

वर्तमान लोकसभा में हमेशा कुछ न कुछ वैसी घटनाएँ होती रहती हैं जिससे देश को शर्मसार होना पड़ता हैं .इस वर्ष 13 मई दिन दिन रविवार को संसद की 60 वी वर्षगाठ मनाई गई . उस दिन हमारे माननीय सांसद सदस्यों ने कई संकल्प लिए , जिनमे सबसे महत्वपूर्ण यह था की कुछ ऐसी व्यवस्था कि जानी चाहिए ताकि संसद की कार्यवाही बाधित न हो . लेकिन अगले ही दिन सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया और रविवार को किए वादों और शपथों को भुला दिया .आज जिस तरह सांसद बात -बात पर हंगामा खड़ा कर देते हैं जिस कारण लोकसभा अध्यक्ष को दिन भर के लिए संसद की कार्यवाही रद्द करनी पड़ती हैं , जो जनता के साथ अन्याय हैं . एम आधिकारिक आकलन के अनुसार संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन 2 करोड़ से अधिक खर्च होता हैं .इसके अलावा प्रश्न का उत्तर तैयार करने में मंत्रालय को काफी मशक्कत करनी पड़ती हैं .किसी राज्य द्वारा समुचित सूचना उपलब्ध नहीं कराये जाने पर सम्बंधित मंत्रालय के अधिकारी उस राज्य में जाकर सूचना प्राप्त करते हैं जिसमे काफी धन खर्च होता हैं परन्तु हंगामे के कारण सब व्यर्थ हो जाता हैं .किसी भी विधेयक पर समुचित रूप से चर्चा नहीं हो पाती हैं जिससे विधेयक लटक जाती हैं .मसलन महिला आरक्षण विधेयक ,लोकपाल विधेयक .
भारतीय संसद के सम्बन्ध में ईधर जो बात सबसे अधिक कही जाती हैं और जो समाचार पत्रों की सुर्खिया बनती हैं वह हैं संसद में सदस्यों का एक -दुसरे के ऊपर चिल्लाना ,कागज -छिनना , घूसे दिखाना ,कभी -कभार हिंसा पर उतर जाना ,पीठासीन अधिकारी की अवज्ञा करना ,अध्यक्ष की आसन की ओर आकर धरना देना जिसके कारण संसद का सुचारू रूप से नहीं चल पाना .इन सबों के कारण ही भारतीय नागरिकों में राजनीतिज्ञों के प्रति सम्मान की भावना में भारी कमी देखने को मिलती हैं .यह बात चुनाव के मत प्रतिशत से भी स्पष्ट हो जाता हैं .यदि 45 प्रतिशत मतदान में किसी उम्मीदवार को 30 प्रतिशत मत प्राप्त होते हैं तो उसे जन प्रतिनिधि घोषित कर दिया जाता हैं . जनता न चाहते हुए भी उक्त जनप्रतिनिधि को स्वीकार करती हैं . बड़े शहरों की अपेक्षा छोटे शहरों ओर गावों मत प्रतिशत अधिक होते हैं ,फिर भी सुविधाए बड़े शहरों में ही अधिक होती हैं ,गावों में नहीं जबकि गावों में एक बड़ी आबादी निवास करती हैं. कम मतदान प्रतिशत जनता में उम्मीदवारों के नापसंदगी को दर्शाता हैं अर्थात जनता खड़े उम्मीदवारों में से किसी को भी अपने प्रतिनिधि नहीं बनाना चाहती हैं .राजनितिक पार्टियों को चुनाव में दागी उम्मीदवारों को न उतारकर साफ छवि वाले उम्मीदवारों को उतारना चाहिए ताकि जनता में मतदान के प्रति जागरूकता बढे .लोगों का भी यह कर्तव्य हैं की वह चुनाव के दिन वोट गिराने जाए न की उस दिन को “छुट्टी का दिन”समझे .जनता को अपने लोकतान्त्रिक अधिकार ‘मतदान का अधिकार ‘का प्रयोग करना चाहिए .संसद को चुनाव सुधार जोर देने होंगे ताकि अच्छे लोग संसद जैसे पवित्र मंदिर में पहुँच सके और देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था मजबूत हो सके .

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता हैं कि भारतीय संसद ने अब तक विकास यात्रा किया हैं .संसदीय लोकतंत्र को मजबूती मिली हैं परन्तु जनप्रतिनिधि के प्रतिनिधि होने पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया हैं .स्वाधीनता और संसद दोनों ही अत्यंत कोमल पौधे हैं . यदि इन्हें ध्यानपूर्वक सींचा – संजोया न जाए तो ये शीघ्र मुरझा जाते हैं.भारतीय संसद जटिल संस्थगत चुनौतियों का सामना कर रही हैं .अतः संसद को अपनी शासन कला में और निखर लाना होगा ताकि देश और तीव्र गति से विकास के पथ पर अग्रसर हो सके .

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