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खतरे में माँ (लेखक -अमित कुमार गुप्ता )

जो कहूँगा सच कहूँगा .
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भारत नदियो का देश रहा हैं . जहा गंगा , यमुना, सरस्वती ,गंडक , घाघरा ,कोशी , दामोदर ,गोदावरी जैसी पवित्र नदिया बहती हैं . इन नदियो में गंगा का स्थान अद्वितीय हैं . गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं हैं वरन यह भारत के करोडो लोगो की आस्था की प्रतीक भी रही हैं .इसके अलावा धार्मिक ग्रंथो में भी इसकी चर्चा रही हैं .गंगा को पुण्य ललिता .पतित पावनी न जाने कितने नामो से जाना जाता हैं. “आईना- ए -अकबरी में उल्लेखित हैं की जब शहंशाह अकबर को प्यास लगती थी तो वे गंगा का जल पीना पसंद करते थे .यह निश्चित करने के लिए कि शहंशाह को ताजा और शुद्ध जल ही मिलता रहे ,इसके लिए अलग विभाग का गठन किया गया था .बाद में अकबर के उत्तराधिकारी जहाँगीर व औरंगजेब ने भी इस परंपरा को कायम रखा “..गंगा मैदानी क्षेत्रो में सबसे पहले हरिद्वार को स्पर्श करती हैं. गंगा बिहार , उत्तर- प्रदेश , तथा पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती हैं .इस राज्यों की लाखो हेक्टेयर की जमीन की सिचाई गंगा नदी के भरोसे होता हैं . लेकिन दुःख की बात यह हैं की भारत की गंगा माँ आज अपनी अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं.
वैज्ञानिको के अनुसार गंगा का प्रदूषित होना उसके उदगम स्थान से ही शुरू हो जाती हैं. पर्यटक ,तीर्थ यात्रा से होने वाली गंदगी से गंगा दूषित हो रही हैं. बड़ी -बड़ी कारखानों ,कंपनियो, अस्पतालों से निकलने वाली दूषित पदार्थो से हमारी पवित्र नदी दूषित हो रही हैं.धर्मशालाओ ,अतिथिगृहो,,होटलों आदि के मल- मूत्र सब गंगा में ही गिराए जा रहे हैं. जिसके कारण इसका जल दूषित होता जा रहा हैं .हरिद्वार स्थित भारत हेवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड के वैज्ञानिको के अनुसार आज गंगा का जल न पीने लायक और न नहाने के लायक भी नहीं बचा हैं. हरिद्वार में स्थित कंपनिया ,अस्पताल ,होटल आदि अपने यहाँ की सारा का सारा कचरा गंगा में बहा देते हैं . गंगा निकलती तो हैं साफ और स्वच्छ परन्तु सबसे पहले वह हरिद्वार आती हैं और हरिद्वार से ही वह पूरी तरह से दूषित हो जाती हैं .हरिद्वार की दवा कंपनिया खतरनाक रसायन जैसे एसीटोन, हाईड्रोक्लोराइड अम्ल आदि गंगा में बहा देते हैं जिससे इस पवित्र नदी का जल दूषित हो गया हैं.
इस नदी को बचाने लिए पर्यावरण जाग्रति को एक रचनात्मक आन्दोलन का रूप प्रदान करना होगा. उधोगो को लगाने के पहले प्रदुषण रोकने सम्बन्धी नीति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. किसी भी प्रकार की कारखानों को प्रदुषण फ़ैलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इसके बावजूद भी अगर नदी को प्रदूषित किया जाय तो प्रदुषण फ़ैलाने वाले के खिलाफ कठोर से कठोर सजा का प्रावधान किया जाय. केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार गंगा नदी में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कमती जा रही हैं .एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1986 में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 8 .4 मिलीग्राम प्रति लीटर थी ,जो 2010 में घटकर 6 .13 मिलीग्राम प्रति लीटर पर पहुँच गई हैं.नदी से डॉल्फिन की संख्या भी घटती जा रही हैं .डॉल्फिन यह बताता हैं की नदी कितना स्वच्छ हैं अर्थात यह नदी के स्वच्छता का प्रतीक हैं . डॉल्फिन का शरीर कई ऐसे खतरनाक रसायनों का जानकारी सहज उपलब्ध करता हैं जो पानी के नमूने में नहीं मिलता . बोर्ड के अनुसार नदी में कौलिफोर्म बैक्टीरिया की संख्या लगातार खतरनाक ढंग से बढ़ रही हैं.
सरकार ने गंगा की देख -रेख के लिए एक समिति का गठन किया हैं जो एक स्वागत योग्य कदम हैं. सरकार ने जून 1985 में गंगा एक्सन प्लान की शुरुआत तो बड़े जोर- शोर से की लेकिन यह प्लान अपनी गंतव्य तक नहीं पहुँच सका .,महंत निगमानंद ने तो काफी प्रयास किये लेकिन उनका यह प्रयास जरुर रंग लायेगा .उनकी मौत ने बहुत से सवाल खड़े कर दिया हैं .सरकार की नींद उनकी मौत के बाद खुली तो हैं .अब देखना यह हैं की सरकार आस्था का प्रतीक गंगा माँ को बचाने के लिए क्या कदम उठती हैं? .आम जनता का भी यह कर्त्तव्य बनता हैं की वह सरकार का साथ दे न की सिर्फ सरकार की आलोचना करे .हमें अपने कर्तव्य नहीं भुलाने चाहिए . सरकार को जागरूकता अभियान पर विशेष ध्यान देना चाहिए. मध्यम वर्ग के लोग मुक्ति के नाम पर बहुत सारी दूषित चीजे गंगा नदी में डाल देते हैं जिसके परिणामस्वरूप इसका जल दूषित होता जा रहा हैं. अतः जल्द से जल्द गंगा को दूषित होने से बचाने के लिए समय रहते उपर्युक्त कदम उठाने होंगे.

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