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मै आज आपको एक आँखों देखी घटना बताता हूँ. जो उस विषय पर सोचने पर मजबूर कर देती हैं .मै अपने घर से नजदीक के शहर से कुछ सामान लाने के लिए निकला. मैंने रास्ते में देखा की एक बुजर्ग महिला चिल्लाती हुई भागी जा रही हैं. और उसके पिच्छे एक व्यक्ति डंडे लेकर दौड़ रहा था. महिला के शरीर से रक्त निकल रहा था. कुछ देर तो मै वही रुक गया.उसके बाद आगे बढ़ा तो एक सज्जन से घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया की एक व्यक्ति एक महिला को पीट रहा था. मैंने देखा की वहा पर काफी भीड़ थी परन्तु किसी ने उसकी मदद करने की कोशिश नहीं की .किसी ने स्थानीय थाने को बुलाना भी मुनासिब नहीं समझा .
मै सोचने लगा की आख़िरकार हमारे समाज को हो क्या गया हैं? विश्वास नहीं होता की ये वही लोग हैं जो मार्केट या गांवो -कस्बो में चोर या डकैत को मार डालते हैं .दूसरी ओर किसी महिला का चीरहरण होता रहता हैं तो वे लोग आराम से मोबाइल या कैमरा से फोटो खीचना शुरू कर देते हैं.आखिर हमारे समाज को हो क्या गया हैं. उन घटनाओ पर हमारा समाज क्यूँ चुप रहता हैं जिससे हमारा पूरा समाज और युवावर्ग प्रभावित होता हैं . किसी का चीरहरण होता रहे तो मजे से उसकी तस्वीर खीचना .यह कैसा समाज हैं. .यहाँ पर समाज का दोहरा चेहरा सामने आता हैं .
अपराध के क्षेत्र में कोई जानबूझकर कदम नहीं रखता हैं. या तो वह उसकी मजबूरी होती हैं या बदला लेने का जूनून. हम सही जानते हैं की भारतीय न्याय प्रणाली की प्रक्रिया बहुत धीमी हैं. और वह बहुत दिनों तक इंतज़ार नहीं कर सकता हैं.उसमे बदला लेने की भावना बलवती हैं.और वह किसी संगठन आदि में जुड़कर अपराध के क्षेत्र में कदम रखता हैं. इसका एक कारण बेरोजगारी और चकाचौंध भरी दुनिया भी हैं .जो युवावर्ग को भटकाव के रास्ते पर ले जाते हैं .सरकार को बदला जा सकता हैं लेकिन समाज के सोच को कैसे बदला जा सकता हैं ?जैसा समाज होगा वैसा ही वहा के लोग होंगे और उसका भविष्य भी वैसा ही होगा. हमारे समाज को बदलना पड़ेगा .
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