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नारी की समस्या

जो कहूँगा सच कहूँगा .
जो कहूँगा सच कहूँगा .
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विश्व की औरतो अपनी
अपनी शक्ति को पहचानों
जंजीरों को तोड़ो
मुक्त होकर
अपने लिए एक नई दुनिया की रचना करो.
जगह वर्ग और जाति सामान न हो सब स्वंतंत्र हो
जहा न्याय हो
ताकि हम मनुष्य की तरह जी सके.

इस कविता के माध्यम से सुजन मैगानो महिलाओ से कहती हैं की वे अपनी शक्ति को पहचाने उनसे वे कह रही हैं की तुम सारी जंजीरों को तोर डालो .और अपने लिए एक नई विश्व का निर्माण करो जहा सब स्वतंत्र , समान और न्यायपूर्ण हो.
औरतो के गुलामी का प्रमुख कारण पित्रसत्ता ही हैं. औरतो की निजी जिन्दगी में में सिर्फ और सिर्फ नियंत्रण ही नियंत्रण दिखाई देता हैं. और महिलाओ के उत्पादन या श्रम शक्ति पर पुरुष का दोहरा नियंत्रण हैं .महिलाए घर के भीतर या बाहर जी भी कमाते हैं उन सब पर पुरसो का ही अधिकार होता हैं. औरत की यौनिकता पर भी पुरशो का ही अधिकार होता हैं. संपत्ति के हक़ पर भी पुरशो का ही अधिकार हैं. समाज में अगर कोई महिला अविवाहित हैं तो उसे हमारा समाज चरित्रहीन कहता हैं जबकि अगर कोई पुरुष अविवाहित हैं तो उसे हमारा समाज साधू कहता हैं. औरतो के बंदिशे दिखाई देती हैं जबकि पुरुषो के लिए किसी प्रकार की कोई बंदिशे नहीं दिखाई देती हैं. लडकिया अगर उच्च शिक्षा लेने चाहती हैं तो परिवार वाले उच्च शिक्षा नहीं लेने देते हैं और उसकी शादी कर देते हैं. यह हमारे समाज का महिलाओ के प्रति दोहरा नजरिया हैं.
एक आंकड़ा के मुताबिक महिलाए दुनिया के कुल काम का 60 % से अधिक काम करती हैं जबकि उन्हें सिर्फ १०% आय प्राप्त होती हैं. वे सिर्फ 1 % सम्पति की मालिक हैं. ऐसा माना जाता हैं की औरतो की वास्तवकि पहचान शादी के बाद होती हैं . शादी के बाद वे अपनी पुरानी पहचान छोड़ कर पति के नाम से जानी जाने लगती हैं. पुरुष ही महिलाओ की यौनिकता , प्रजनन ,मेहनत, उत्पादन पर नियंत्रिन रखता हैं. वैसे तो घर के मुखिया द्वारा सब पर नजर रखा जाता हैं लेकिन औरतो के मामले में यह कुछ ज्यादा सख्त हो जाता हैं. पिता के मरने के बाद पुरुष ही उतराधिकारी बनता हैं ,महिला नहीं. लडको को रौब ज़माने की शिक्षा दी जाति हैं जबकि लडकियों को रौब सहने की शिक्षा दी जाती हैं .अधिकांश आधुनिक धर्म में पित्रसत्तात्मक व्यवस्था ही स्वीकार की गयी हैं.
ग्राम पंचायतो ,राजनितिक पार्टिया ,जन्संचारो के माध्यम पर भी सिर्फ पुरषों का ही अधिकार हैं .ग्राम पंचायतो में आरक्षण देने से हाल के वर्षो में कुछ महिलाए पंचायत प्रमुखों व नगर अध्यक्षों के पद तक पहुच सकी हैं . फिर भी राजनितिक पार्टिया में महिलाओ की उतनी ही संख्या हैं जीतनी उंगलियों पर गिनी जा सके . फिल्मो ,टी .वी . पत्र- पत्रिकाओ में स्त्रिओ की घिसी पिटी तस्वीर परोसी जा रही हैं. शब्दों और टिप्पणियों के माध्यम से पुरुष को उच्चता और महिलाओ को नीचता के अर्थ में दर्शाया जाता हैं.
हर जगह स्त्रियो के साथ दोयम दर्जे का व्यव्हार किया जाता हैं. आम महिलाओ को पुरुष पित्रसत्ता केविरुद्ध आवाज़ उठाना चाहिए.

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