- 37 Posts
- 248 Comments
मार्च 2010 में 108 वा संविधान संशोधन कर महिला आरक्षण बिल पारित किया गया. यह बिल कुछ नेताओ के विरोध के बावजूद पारित किया गया. इसमे महिलाओ के 33 फीसदी आरक्षण दिया गया हैं. यह बिल 15 सालो के लिए बनाया गया हैं. सरकार ने एक ऐतिहासिक काम किया हैं. अभी इस बिल को लोकसभा और 50 फीसदी विधानसभाओं को पार करना हैं. लेकिन यह नहीं कहा जा सकता की यह काम कब तक होगा.
लेकिन सवाल उठता हैं की क्या आरक्षण देने से आम महिलाओ की जिन्दगी में फर्क आ पायेगा? महिलाओ के लिए राजनितिक पदों पर बैठना और ऐसे पदों का उपयोग आम महिलाओ के कल्याण के लिए करना अलग बात हैं. यह मानना गलत होगा की महिलाओ के संसद में पहुचने मात्र से आम महिलाओ का भला हो जायेगा. क्यूँ की ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिसमे महिला जनप्रतिनिधि के द्वारा ही कई ऐसे याज्नाओ को बंद किया गया जो महिलाओ के कल्याण से सम्बंधित थी. यह कतई नहीं समझा जाना चाहिए की महिलाए संसद में पहुंचकर महिला से सम्बंधित कार्य में रूचि लेंगी.
यहाँ यह संभावना बलवती हैं की चुनिन्दा महिलाओ को दिखावटी रूप से संसद में स्थान देकर उन्ही नीतियों का समर्थन के लिए बाध्य किया जायेगा जिसे पुरुष चाहते हैं. वे खुद से निर्णय नहीं ले सकेंगे .महिला आरक्षण के मामले में दलितों के आरक्षण के मॉडल का पालन करना गलत होगा. इस प्रयास से आम दलितों का भला नहीं होगा उलटे दलितों पर अत्याचार होगा ऐसा पहले भी हुआ हैं. दलितों को आरक्षण देने से 120 संसद में पहुचे परन्तु आज भी दलितों की संसय ज्यो की त्यों बनी हुई हैं. कारण यह हैं की किसी दलित का जनप्रतिनिधि का चुना जाना अलग बात हैं और दलित सशक्तिकरण अलग बात हैं.
निश्चय ही यह अच्छी शुरुआत हैं लेकिन आरक्षण से ज्यादा महिलाओ को आत्मबल की जरुरत हैं उन्हें ऐसा बनाया जाना चाहिए ताकि वे खुद बिना किसी के सहयोग के अपने हक़ की लड़ाई लड़ सके उनके शिक्षा पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए. पंचायतो में 50 % आरक्षण देकर सरकार ने सराहनीये काम किया हैं. इससे पंचायतो में महिलाए पंचायत प्रमुख के पद और नगर अध्यक्ष के पद तक पहुच सकी हैं.
अब जल्द से जल्द महिला आरक्षण बिल को पूर्ण रूप दिया जाना चाहिए. आइये इस इस बिल के मुद्दे को आवाज दिया जाये.
Read Comments