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खाप पंचायते और हमारा संविधान

जो कहूँगा सच कहूँगा .
जो कहूँगा सच कहूँगा .
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हरियाणा की खाप पंचायतें अब तक जाति और गोत्र जैसे मुद्दों पर भारतीय संविधान का मजाक उड़ाती रही हैं या उड़ा रही हैं. भारत में न्याय की मशीनरी यानि अदालत के द्वारा दिए गए निर्णय को वे नहीं मानते हैं. अदालत की निर्णय की कॉपी खाप पंचायतों में रद्दी की टोकरी में रखी कागज के बराबर होती हैं. खाप पंचायत अपने को कानून के ऊपर समझते हैं .मुझे लगता हैं कि वे भारतीय संविधान में विश्वास नहीं करते हैं. जाति और गोत्र जैसे मुद्दों पर वे तालिबानी निर्णय देना पसंद करते हैं .
पंजाब , पश्चिमी उत्तर प्रदेश ,हरियाणा राजस्थान में पिछले कुछ समय से खाप पंचायते अपने द्वारा दिए गए तालिबानी निर्णय के कारण चर्चा में हैं. उनके द्वारा दिए गए निर्णय रुढ़िवादी मानसिकता का प्रतीक रही हैं. जाति और गोत्र जैसे मुद्दों पर वे तालिबानी फरमान का पक्षधर रही हैं. प्रेम विवाह करने वाले लागों का किस्सा यहाँ बेजइत्ति , गाँव को त्यागना या अंत में हत्या के रूप में समाप्त हुई हैं .पंचायतों के सामने हमारा संविधान भी बौना नज़र आता हैं.
ऐसा माना जाता हैं की अपने ही गोत्र में वैवाहिक रिश्ते बनाने से जन्म लेने वाला संतान कमजोर होता हैं. इसी कारण से पंचायते इस प्रकार का निर्णय सुनाती हैं. हरियाणा के करनाल की एक अदालत ने एक बहुचर्चित हत्याकांड (प्रेमी -युगल )में खाप पंचायत तालिबानी निर्णय के खिलाफ 5 लोगों को मौत की सजा ,हत्याकांड का षड़यंत्र रचने वाला पंचायत प्रमुख (मुखिया) को उम्रकैद और प्रेमी-युगल को अगवा करने वाले गाड़ी चालक को सात साल की सजा सुनाई हैं .इस निर्णय से खाप पंचायतों के द्वारा दिए जाने वाले तालिबानी निर्णय पर थोरा अंकुश लगाने की संभावना दिखा रही हैं. इसके लिए हमारे पुलिस- प्रशासन को सतर्क होना पड़ेगा और इन लोगो के खिलाफ कड़ी करवाई करनी होंगी.
खाप पंचायतों द्वारा दिए निर्णय के लिए सिर्फ खाप पंचायत ही दोषी नहीं हैं ,वे राजनितिक दल भी दोषी हैं जो उनका समर्थन करते हैं . वोट बैंक की खातिर ये राजनितिक दल खाप पंचायतों द्वारा दिए जा रहे निर्णय के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं
उनके द्वारा दिए जा रहे तालिबानी फरमानों पर वे चुप्पी साधे रहते हैं. आज भारत जिसे मन करता हैं वही एक राजनितिक दल ,या कोई अन्य दल का गठन कर लेता हैं .मुझे तो लगता हैं कि भारत में दलदलिये व्यवस्था हैं .
आज़ादी के बाद आस बंधी थी कि जाति -बंधन के बगैर शादी – विवाह हो सकेगा. सरकार ने इसके लिए कानून भी बनाये लेकिन जिस प्रकार केंद्र व राज्य कि राजनितिक दल जाति को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं .आज की राजनीति जाति की राजनीति हो गई हैं .किसी प्रदेश के नेता कहते हैं कि विकाश से वोट नहीं मिलता बल्कि सामाजिक -समीकरण से वोट मिलता हैं. जिस राष्ट्र का जिम्मेदार नेता इस तरह का बयान दे वह प्रदेश क्या विकाश करेगा.
चलिए मैं मुख्य मुद्दा .खाप पंचायते पर लौटता हूँ .आज दुनिया चाँद पर कदम बढ़ाने को तैयार हैं और खाप पंचायते इस प्रकार का निर्णय देकर दुनिया में भारत की छवि ख़राब कर रही हैं. आइये हम युवा वर्ग ही इन तालिबानी निर्णयों के खिलाफ इस ब्लॉग के साथ आगे बढे.

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